इस जांच से चुटकियों में पता चल जाएगा दवा असली है या नकली

इस जांच से चुटकियों में पता चल जाएगा दवा असली है या नकली

सेहतराग टीम

किसी भी बीमारी में नकली दवा कितना नुकसान करती है इस बारे में शायद भारतीयों से अधिक दुनिया में कोई नहीं जानता होगा क्‍योंकि यहां बड़े पैमाने पर नकली दवाओं की ब‍िक्री होती है। बिहार, बंगाल, उत्‍तर प्रदेश जैसे राज्‍यों के छोटे शहर तो इन नकली दवाओं के गढ़ जैसे बन गए हैं जहां सिर्फ दवा का रैपर देखकर कोई ये पहचान नहीं कर सकता कि कौन सी दवा असली और कौन सी नकली है।

नक्‍कालों ने असली दवा की नकल बनाने में महारथ हासिल कर ली है। बिना लैबोरेटरी जांच के कोई नहीं बता सकता कि दवा नकली है और इतनी बड़ी संख्‍या में नकली दवाओं की जांच भी असंभव काम है।

नक्‍कालों की शामत

मगर नक्‍कालों के दिन भी अब भर गए हैं। वैज्ञानिकों ने आखिरकार कागज आधारित ऐसी जांच की विधि विकसित करने में कामयाबी हासिल की है जो चुटकियों में बता देगी कि एंटीबायोटिक दवा नकली है या असली। ये जांच बस कुछ ही मिनट में पूरी हो जाती है। दवाई नकली होने पर यह कागज खास तरह के लाल रंग में तब्दील हो जाता है। 

विकासशील देश रहते हैं निशाने पर

विकासशील देशों में बड़े पैमाने पर घटिया दवाओं का उत्पादक और वितरण होता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) का अनुमान है कि दुनिया भर में लगभग 10 फीसदी दवाइयां फर्जी हो सकती हैं और उनमें से 50 फीसदी एंटीबायोटिक के रूप में होती हैं।

नकली एंटीबायोटिक दवाइयों से न केवल मरीज की जान को खतरा पैदा होता है बल्कि दुनिया भर में एंटीमाइक्रोबियल प्रतिरोध की बड़े पैमाने पर समस्या भी पैदा होती है।

अनुसंधानकर्ताओं ने कागज आधारित जांच का विकास किया है जिससे तेजी से इस बात का पता चल सकता है कि दवाई असली है या नहीं और क्या उसमें बेकिंग सोडा जैसी चीजें मिलाई गई हैं।

 

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